"मीठे बच्चे - वारिस बनना है तो सदा खबरदारी रखो कि कोई भी काम श्रीमत के विरुद्ध न हो"
प्रश्नः-बाप के पास दो प्रकार के वारिस हैं कौन से?
उत्तर:-एक तो समर्पित बच्चे हैं जो माँ बाप की डायरेक्ट परवरिश ले रहे हैं, लेकिन उनके कर्मों की गुह्य गति है। दूसरे जो घर-गृहस्थ में रहते पवित्र और ट्रस्टी हैं, उन्हें सम्पूर्ण ट्रस्टी बनने में मेहनत जरूर लगती है लेकिन अगर पूरे ट्रस्टी बन जायें, सबसे ममत्व निकल जाये तो पूरे वर्से के अधिकारी बन सकते हैं।
गीत:-हमारे तीर्थ न्यारे हैं....
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना, जिसका अर्थ भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार बच्चों ने जाना, समझा फिर भी बाबा विस्तार से समझाते हैं। दुनिया में और कोई नहीं जानते। परमपिता परमात्मा जो पतित-पावन हैं, उनकी महिमा बहुत है। परन्तु उनकी महिमा को कोई यथार्थ रीति से जानते नहीं। वह तो और ही सर्वव्यापी कह देते हैं। फिर गायन भी करते हैं पतित-पावन.. वह तो जरूर एक होगा ना, जो सबको आकर पावन बनाते हैं, इसलिए उनको सर्वव्यापी कह नहीं सकते। जबकि उनको कहते हैं पतित-पावन आओ। यह किसकी बुद्धि में नहीं आता। भारत पावन था, अभी पतित है। तुम पावन दुनिया के मालिक थे, अभी पतित दुनिया में हो। जानते हो हमको बाबा फिर से पावन दुनिया का मालिक बनाते हैं, जो मालिक बनाने वाले थे वही आये हुए हैं। यह है तुम्हारी चैतन्य यात्रा, जिसके यादगार फिर भक्ति मार्ग में वह यात्रा चली आती है। तुम बच्चे जानते हो कि अभी वही पूज्य देवी देवता जो पुजारी बने थे, वही ब्राह्मण बने हैं फिर सो देवता बनेंगे। बाप ही बैठ कर्म-अकर्म-विकर्म की गुह्य गति समझाते हैं। भविष्य नई दुनिया में तुम्हारे कर्म अकर्म होंगे। यथा राजा रानी तथा प्रजा... बाकी सब शान्तिधाम में थे। यह तो बड़ी सहज बात है कि भारत सुखधाम था। सम्पूर्ण निर्विकारी थे, जिन्हों का देवी-देवता नाम मशहूर है। दूसरा कोई नाम नहीं लेते हैं। लक्ष्मी-नारायण सूर्यवंशी फिर राम सीता चन्द्रवंशी थे। फिर उन्हों की डिनायस्टी कहा जाता है। इतनी और किसकी डिनायस्टी नहीं चलती है। क्रिश्चियन की भी थोड़ा समय चलती है, पहले बादशाही नहीं होती है। आधा समय के बाद जब प्रजा वृद्धि को पाती है तब राजाई चलती है। एडवर्ड, जार्ज आदि फिरते रहते हैं। थोड़े-थोड़े टाइम में फिर बदलते जाते हैं। यह एक ही डिनायस्टी है जो 1250 वर्ष चलती है, इसमें बदली सदली नहीं होती है। सूयवंशी, चन्द्रवंशी डिनायस्टी वालों का ही नाम चलता है। समझा जाता है कि भिन्न नाम, रूप, देश काल होंगे। लम्बी चौड़ी डिनायस्टी चलती है। चेंज नहीं होती है। इस समय तुम बच्चों को बाप बैठ अच्छा कर्म करना सिखलाते हैं। तुम बच्चे कभी किसको दु:ख नहीं दो। यहाँ तुम सब पढ़ने के लिए बैठे हो। अपने-अपने घर में भी बहुत रहते हैं। घर में रहते हुए भी वारिस बन सकते हैं। यहाँ जब तक माँ बाप परवरिश करते हैं। उन्हों की भी कर्मों की गति न्यारी है। बाकी जो बाहर रहते हैं, सब कुछ बाबा का समझ ट्रस्टी बनकर रहते हैं, वह भी जैसे वारिस हो गये। हाँ डिफीकल्टी जरूर होती है। जब सबसे ममत्व टूट जाए और पूरा निश्चय हो, हम सब कुछ उनके अर्पण करते हैं, जीते जी हम उनकी मिलकियत के ट्रस्टी हैं। ऐसे कोई जीते जी बनते नहीं हैं। जब मरने का समय होता है तब ट्रस्टी बनाकर जाते हैं। यहाँ सरेन्डर करते हैं। बाबा कहते हैं बच्चे ट्रस्टी होकर रहो। यह तो भक्ति मार्ग में भी कहते आये हो - भगवान ने सब कुछ दिया है। अभी बाप कहते हैं बच्चे यहाँ तुम सम्मुख बैठे हो। अब देह सहित जो भी तुम्हारा है - उनसे ममत्व निकालना है। जिसके लिए कहते आये हो सब कुछ ईश्वर का दिया हुआ है। जब वह आयेंगे तब उन पर वारी जायेंगे, उनके हवाले सब कुछ कर देंगे। यहाँ तो इनको जायदाद आदि बनानी नहीं है। यह कोई लेने वाला नहीं है, देने वाला है। कहते हैं ट्रस्टी बन पूछते रहना है क्योंकि भूल-चूक कभी भी हो सकती है। पक्का ट्रस्टी होने में टाइम तो लगता है। बाबा जानते हैं - टाइम लगेगा। ट्रस्टी होने से ही वारिस बनते हैं। यहाँ रहने वाले भी ट्रस्टी बनते हैं। बाबा कहते हैं मैं रिटर्न में बैकुण्ठ की बादशाही देता हूँ। तुम्हें दूसरा जन्म अमरलोक में लेना है। ट्रस्टी होकर फिर खबरदार भी रहना है। अक्सर करके गरीब ही निमित्त बनते हैं ऊंच पद पाने। वारिस बनते हैं, कोई फिर पिछाड़ी में चन्द्रवंशी में जाकर मालिक बनेंगे, तब तक बड़ों के आगे सर्विस करते रहेंगे। अब भी कई ऐसे हैं जो कभी उन्नति को नहीं पाते हैं। फिर समझा जाता है - उनकी तकदीर में शायद कुछ नहीं है। सर्विस करते-करते पिछाड़ी में कुछ पद पा लेंगे। सो भी रहेंगे तो। निकल गये तो प्रजा में भी कम से कम पद पायेंगे। बहुत हैं जो जामड़े (बौने) हैं। वृद्धि को पाते ही नहीं हैं। कुछ समझते ही नहीं हैं। कर्म विकर्म की गति बाप ही समझाते हैं। यहाँ कुछ भी अच्छे कर्म नहीं करते तो विकर्म वृद्धि को पाते जाते हैं। तुम भी कहेंगे यह तो ड्रामा का पार्ट हुआ ना। यह भी चाहिए जरूर। जो राजाई के अन्दर रहते नौकरी आदि करते रहेंगे। नौकर फिर उन्नति को पाते पिछाड़ी में राजाई पायेंगे। ईश्वर के पास रहते हुए ऐसे कर्म करते हैं तो फिर सजायें भी बहुत खाते हैं। पद भी नीच मिलता है इसलिए समझाया जाता है ऐसे-ऐसे विकर्म नहीं करो। नहीं तो वृद्धि को पाते रहेंगे। सर्विस कुछ करते नहीं, खाते रहते हैं, पढ़ते भी नहीं, यह कर्मों की गुह्य गति देखो कैसी है। बाप ऐसे कर्म सिखलाते हैं जो स्वर्ग की राजाई पा सकें। श्रीमत पर ऐसा कर्म करना है। आसुरी कर्म भी देखते हो। कितने गरीब फिर पापी अजामिल जैसे बन जाते हैं। यहाँ भी ऐसे बनते हैं। कोई तो बादशाह बनते फिर कोई दास दासी बन पिछाड़ी में कुछ पद पा लेते हैं। ऐसे भी हैं - बाप अच्छी तरह जानते हैं। यहाँ रहते भी अच्छा कर्म नहीं करते हैं तो नशा भी नहीं रहता है। कर्मों की गति बाप बैठ समझाते हैं।
बाप कहते हैं मैं हूँ ही गरीब-निवाज़, मुझे गरीबों के पाई-पाई से स्थापना करनी है, मैं साहूकार निवाज़ तो नहीं हूँ। अक्सर करके मातायें गरीब होती हैं। उनके हाथ में कुछ भी नहीं रहता है। वह कोई हाफ पार्टनर नहीं हैं। नहीं तो विल करते तो आधा हिस्सा उन्हों का निकालते। घर के तो बच्चे ही वारिस होते हैं। भल गवर्मेन्ट ने आजकल कायदे निकाले हैं। अभी तुम जानते हो भारत बिल्कुल ही गरीब है। कुमारियां अक्सर करके गरीब होती हैं, जब तक ससुरघर जायें, विकार का सौदा हो तब मिले। यह है ही विशश वर्ल्ड। निर्विकारी कभी किसी के आगे हाथ नहीं जोड़ेंगे। यह किसको पता नहीं है जो निर्विकारी हैं वही फिर विकारों में गिरते हैं। भगत लोग तो समझते कि कृष्ण हाजिराहजूर है। भगवान कभी मरता नहीं है, पुनर्जन्म नहीं लेता। तुमको तो अभी ज्ञान है। जानते हो लक्ष्मी-नारायण सबसे ऊंच स्वर्ग के मालिक थे। सीता राम को स्वर्ग का मालिक नहीं कहेंगे। यह भी अभी रोशनी मिली है। तो बाप समझाते हैं जबकि अब सद्गति होती है तो दुर्गति का कोई भी कर्तव्य नहीं करना है। सबसे पहले तो देह-अभिमान छोड़ना है। सबसे अच्छा कर्म है एक बाप को याद करना, देही-अभिमानी हो रहना। अपनी जांच करते रहना है। कोई विकार तो नहीं आया। लोभ भी नहीं करना है। जबकि सब कुछ ईश्वर का है तो हम लोभ क्यों रखें। हमको जो बाप कहते हैं वह करते हैं। बाप तो हर एक बच्चे की रग अच्छी तरह देखते हैं ना। पोतामेल भी देखते हैं। कोई बहुत गरीब होते हैं तो कुछ न कुछ 15-20 रुपया बचाकर भी देते हैं। अपना भविष्य बनाते हैं। बाप राय भी देते हैं। थोड़ा बहुत फिर अपने बैंक में रखो 5 दो, 10 बैंक में रखो। तो श्रीमत मिली ना। पेट को पट्टी बांधकर भी शिवबाबा को देते हैं। शिवबाबा इन द्वारा ही तुम्हारे रहने करने के प्रबन्ध में लगाते हैं। यह ब्रह्मा बाबा भी शिवबाबा का अकेला बच्चा है। यह इकट्ठा क्यों करेगा। जबकि इसने ही अपना सब कुछ माताओं की सेवा में लगाया है। सब कुछ दे दिया। यह बच्चियां फिर 21 जन्मों के लिए वर्सा पाती हैं। तुम जानते हो हमारे देवी देवताओं का गृहस्थ धर्म पवित्र था। अभी तो पतित बन गये हो। तब बाबा समझाते हैं - यह भी ट्रस्टी हो गया ना। तुम माताओं को ट्रस्टी बना लिया। तुम यह सम्भालो, ममत्व टूट गया। बाप ने साक्षात्कार करा दिया कि तुम विश्व के मालिक बनते हो। विनाश की तैयारियां भी देख रहे हैं। परन्तु यह कोई नहीं समझते कि विनाश कराने वाला कौन है। कोई प्रेरक जरूर है। समझते भी हैं कि विनाश होने वाला है। जरूर भगवान भी होगा। परन्तु किस रूप में होगा? कृष्ण कैसे आये? भल कृष्ण का रूप बहुतों का बना देते हैं परन्तु वह तो आर्टीफीशियल हो जाता है। बहुत हैं जो कृष्ण का रूप बनाकर ठगते हैं। कोई का फिर जड़ मूर्ति में भाव बैठ जाता है। तो वैसे ही साक्षात्कार हो जाता है और फिर जाकर उनको चटकते हैं; क्योंकि कृष्ण है मोस्ट लवली बालक स्वर्ग का। उनमें कशिश बहुत है। बाबा से बहुत भारी वर्सा लेना होता है। बाप बैठ समझाते हैं कर्मों के ऊपर। बाबा से अगर कोई पूछते हैं तो बाबा झट बता सकते हैं - यह कुछ समझते ही नहीं। कर्म ऐसे करते हैं जो विकर्म ही होता है। देह-अभिमान बहुत रहता है। भल शिवबाबा कहते रहते हैं, ऐसे तो शिवबाबा के भगत बहुत हैं, काशी में भगत बैठे हैं। उन्हों का यह मंत्र है शिव काशी विश्वनाथ गंगा। अर्थ कुछ भी नहीं समझते हैं - समझते हैं गंगा इनसे निकली है इसलिए गंगा के कण्ठे पर जाकर बैठते हैं। समझते हैं हम वहाँ मुक्त हो जायेंगे। शिव काशी, शिव काशी उच्चारते हैं। फिर दिखाते हैं भागीरथ ने गंगा लाई। क्या गंगा द्वारा पतित से पावन हो जायेंगे। पतित-पावन को तो पुकारते हैं ना। वह कौन है - कैसे सहज राजयोग सिखाते हैं - यह कोई जानते नहीं। शिवबाबा को कैसे याद किया जाता है - यह भी तुम जानते हो। तुम्हारी है याद की यात्रा। तुम्हारी जिस्मानी यात्रा बन्द है। वह होती है जिस्मानी यात्रा, यह है रूहानी यात्रा। बाप कहते रहते हैं बच्चे घर को याद करो। यह छी-छी दुनिया, छी-छी पुराना शरीर है। मैं तुम्हारा बाप हूँ। तुमको वापिस ले जाऊंगा। इस महाभारत की लड़ाई में कितने खत्म होने वाले हैं। इतने करोड़ों मनुष्य हैं उनकी आत्मायें कहाँ जायेंगी। अपने-अपने धर्म के सेक्शन में स्टॉर मिसल जाकर रहेंगी। उसे कहा ही जाता है निराकारी दुनिया। वर्ल्ड उसको कहा जाता, जहाँ बहुत रहते हैं। अगर कहें ब्रह्म में लीन हो जाते हैं तो वर्ल्ड तो हुई नहीं। गाया जाता है निराकारी दुनिया, जिसमें आत्मायें रहती हैं, जिनको फिर पार्ट बजाने आना है। यह अविनाशी ड्रामा है। प्रलय तो कभी होती नहीं। सतयुग से कलियुग तक मनुष्यों की वृद्धि होती जाती है। वहाँ दूसरा कोई धर्म नहीं होगा। यहाँ तुमको नॉलेज का मालूम है। वहाँ सतयुग में नॉलेज नहीं रहती। इस समय तो बाप आप समान त्रिकालदर्शी बनाते हैं। अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जीते जी देह सहित सबसे ममत्व निकाल ट्रस्टी बनकर रहना है। श्रेष्ठ कर्म करने हैं। कभी भी किसी को दु:ख नहीं देना है।
2) किसी भी चीज़ में लोभ नहीं रखना है। रोज़ अपना पोतामेल देखना है कि मेरे में कोई विकार तो नहीं हैं। देह-अभिमान छोड़ एक बाप को याद करने का श्रेष्ठ कर्म करना है।
वरदान:-एक "पाइंट" शब्द की स्मृति से मन-बुद्धि को निगेटिव के प्रभाव से बचाने वाले नम्बरवन विजयी भव
वर्तमान समय विशेष माया का प्रभाव मन में निगेटिव भाव और भावना पैदा करने वा यथार्थ महसूसता को समाप्त करने का चल रहा है इसलिए पहले से ही सेफ्टी का साधन अपनाओ। इसका विशेष साधन है सिर्फ एक "पाइंट" शब्द। कोई भी संकल्प, बोल वा कर्म व्यर्थ है तो उसे पाइंट लगा दो तब नम्बरवन विजयी बन सकेंगे। माया के स्वरूपों को पहचानो, सीजन को पहचानो और स्वयं को सेफ कर लो।
स्लोगन:-संगम पर जिन्हें सेवा का श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त है वही पदमापदम भाग्यवान हैं।
प्रश्नः-बाप के पास दो प्रकार के वारिस हैं कौन से?
उत्तर:-एक तो समर्पित बच्चे हैं जो माँ बाप की डायरेक्ट परवरिश ले रहे हैं, लेकिन उनके कर्मों की गुह्य गति है। दूसरे जो घर-गृहस्थ में रहते पवित्र और ट्रस्टी हैं, उन्हें सम्पूर्ण ट्रस्टी बनने में मेहनत जरूर लगती है लेकिन अगर पूरे ट्रस्टी बन जायें, सबसे ममत्व निकल जाये तो पूरे वर्से के अधिकारी बन सकते हैं।
गीत:-हमारे तीर्थ न्यारे हैं....
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना, जिसका अर्थ भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार बच्चों ने जाना, समझा फिर भी बाबा विस्तार से समझाते हैं। दुनिया में और कोई नहीं जानते। परमपिता परमात्मा जो पतित-पावन हैं, उनकी महिमा बहुत है। परन्तु उनकी महिमा को कोई यथार्थ रीति से जानते नहीं। वह तो और ही सर्वव्यापी कह देते हैं। फिर गायन भी करते हैं पतित-पावन.. वह तो जरूर एक होगा ना, जो सबको आकर पावन बनाते हैं, इसलिए उनको सर्वव्यापी कह नहीं सकते। जबकि उनको कहते हैं पतित-पावन आओ। यह किसकी बुद्धि में नहीं आता। भारत पावन था, अभी पतित है। तुम पावन दुनिया के मालिक थे, अभी पतित दुनिया में हो। जानते हो हमको बाबा फिर से पावन दुनिया का मालिक बनाते हैं, जो मालिक बनाने वाले थे वही आये हुए हैं। यह है तुम्हारी चैतन्य यात्रा, जिसके यादगार फिर भक्ति मार्ग में वह यात्रा चली आती है। तुम बच्चे जानते हो कि अभी वही पूज्य देवी देवता जो पुजारी बने थे, वही ब्राह्मण बने हैं फिर सो देवता बनेंगे। बाप ही बैठ कर्म-अकर्म-विकर्म की गुह्य गति समझाते हैं। भविष्य नई दुनिया में तुम्हारे कर्म अकर्म होंगे। यथा राजा रानी तथा प्रजा... बाकी सब शान्तिधाम में थे। यह तो बड़ी सहज बात है कि भारत सुखधाम था। सम्पूर्ण निर्विकारी थे, जिन्हों का देवी-देवता नाम मशहूर है। दूसरा कोई नाम नहीं लेते हैं। लक्ष्मी-नारायण सूर्यवंशी फिर राम सीता चन्द्रवंशी थे। फिर उन्हों की डिनायस्टी कहा जाता है। इतनी और किसकी डिनायस्टी नहीं चलती है। क्रिश्चियन की भी थोड़ा समय चलती है, पहले बादशाही नहीं होती है। आधा समय के बाद जब प्रजा वृद्धि को पाती है तब राजाई चलती है। एडवर्ड, जार्ज आदि फिरते रहते हैं। थोड़े-थोड़े टाइम में फिर बदलते जाते हैं। यह एक ही डिनायस्टी है जो 1250 वर्ष चलती है, इसमें बदली सदली नहीं होती है। सूयवंशी, चन्द्रवंशी डिनायस्टी वालों का ही नाम चलता है। समझा जाता है कि भिन्न नाम, रूप, देश काल होंगे। लम्बी चौड़ी डिनायस्टी चलती है। चेंज नहीं होती है। इस समय तुम बच्चों को बाप बैठ अच्छा कर्म करना सिखलाते हैं। तुम बच्चे कभी किसको दु:ख नहीं दो। यहाँ तुम सब पढ़ने के लिए बैठे हो। अपने-अपने घर में भी बहुत रहते हैं। घर में रहते हुए भी वारिस बन सकते हैं। यहाँ जब तक माँ बाप परवरिश करते हैं। उन्हों की भी कर्मों की गति न्यारी है। बाकी जो बाहर रहते हैं, सब कुछ बाबा का समझ ट्रस्टी बनकर रहते हैं, वह भी जैसे वारिस हो गये। हाँ डिफीकल्टी जरूर होती है। जब सबसे ममत्व टूट जाए और पूरा निश्चय हो, हम सब कुछ उनके अर्पण करते हैं, जीते जी हम उनकी मिलकियत के ट्रस्टी हैं। ऐसे कोई जीते जी बनते नहीं हैं। जब मरने का समय होता है तब ट्रस्टी बनाकर जाते हैं। यहाँ सरेन्डर करते हैं। बाबा कहते हैं बच्चे ट्रस्टी होकर रहो। यह तो भक्ति मार्ग में भी कहते आये हो - भगवान ने सब कुछ दिया है। अभी बाप कहते हैं बच्चे यहाँ तुम सम्मुख बैठे हो। अब देह सहित जो भी तुम्हारा है - उनसे ममत्व निकालना है। जिसके लिए कहते आये हो सब कुछ ईश्वर का दिया हुआ है। जब वह आयेंगे तब उन पर वारी जायेंगे, उनके हवाले सब कुछ कर देंगे। यहाँ तो इनको जायदाद आदि बनानी नहीं है। यह कोई लेने वाला नहीं है, देने वाला है। कहते हैं ट्रस्टी बन पूछते रहना है क्योंकि भूल-चूक कभी भी हो सकती है। पक्का ट्रस्टी होने में टाइम तो लगता है। बाबा जानते हैं - टाइम लगेगा। ट्रस्टी होने से ही वारिस बनते हैं। यहाँ रहने वाले भी ट्रस्टी बनते हैं। बाबा कहते हैं मैं रिटर्न में बैकुण्ठ की बादशाही देता हूँ। तुम्हें दूसरा जन्म अमरलोक में लेना है। ट्रस्टी होकर फिर खबरदार भी रहना है। अक्सर करके गरीब ही निमित्त बनते हैं ऊंच पद पाने। वारिस बनते हैं, कोई फिर पिछाड़ी में चन्द्रवंशी में जाकर मालिक बनेंगे, तब तक बड़ों के आगे सर्विस करते रहेंगे। अब भी कई ऐसे हैं जो कभी उन्नति को नहीं पाते हैं। फिर समझा जाता है - उनकी तकदीर में शायद कुछ नहीं है। सर्विस करते-करते पिछाड़ी में कुछ पद पा लेंगे। सो भी रहेंगे तो। निकल गये तो प्रजा में भी कम से कम पद पायेंगे। बहुत हैं जो जामड़े (बौने) हैं। वृद्धि को पाते ही नहीं हैं। कुछ समझते ही नहीं हैं। कर्म विकर्म की गति बाप ही समझाते हैं। यहाँ कुछ भी अच्छे कर्म नहीं करते तो विकर्म वृद्धि को पाते जाते हैं। तुम भी कहेंगे यह तो ड्रामा का पार्ट हुआ ना। यह भी चाहिए जरूर। जो राजाई के अन्दर रहते नौकरी आदि करते रहेंगे। नौकर फिर उन्नति को पाते पिछाड़ी में राजाई पायेंगे। ईश्वर के पास रहते हुए ऐसे कर्म करते हैं तो फिर सजायें भी बहुत खाते हैं। पद भी नीच मिलता है इसलिए समझाया जाता है ऐसे-ऐसे विकर्म नहीं करो। नहीं तो वृद्धि को पाते रहेंगे। सर्विस कुछ करते नहीं, खाते रहते हैं, पढ़ते भी नहीं, यह कर्मों की गुह्य गति देखो कैसी है। बाप ऐसे कर्म सिखलाते हैं जो स्वर्ग की राजाई पा सकें। श्रीमत पर ऐसा कर्म करना है। आसुरी कर्म भी देखते हो। कितने गरीब फिर पापी अजामिल जैसे बन जाते हैं। यहाँ भी ऐसे बनते हैं। कोई तो बादशाह बनते फिर कोई दास दासी बन पिछाड़ी में कुछ पद पा लेते हैं। ऐसे भी हैं - बाप अच्छी तरह जानते हैं। यहाँ रहते भी अच्छा कर्म नहीं करते हैं तो नशा भी नहीं रहता है। कर्मों की गति बाप बैठ समझाते हैं।
बाप कहते हैं मैं हूँ ही गरीब-निवाज़, मुझे गरीबों के पाई-पाई से स्थापना करनी है, मैं साहूकार निवाज़ तो नहीं हूँ। अक्सर करके मातायें गरीब होती हैं। उनके हाथ में कुछ भी नहीं रहता है। वह कोई हाफ पार्टनर नहीं हैं। नहीं तो विल करते तो आधा हिस्सा उन्हों का निकालते। घर के तो बच्चे ही वारिस होते हैं। भल गवर्मेन्ट ने आजकल कायदे निकाले हैं। अभी तुम जानते हो भारत बिल्कुल ही गरीब है। कुमारियां अक्सर करके गरीब होती हैं, जब तक ससुरघर जायें, विकार का सौदा हो तब मिले। यह है ही विशश वर्ल्ड। निर्विकारी कभी किसी के आगे हाथ नहीं जोड़ेंगे। यह किसको पता नहीं है जो निर्विकारी हैं वही फिर विकारों में गिरते हैं। भगत लोग तो समझते कि कृष्ण हाजिराहजूर है। भगवान कभी मरता नहीं है, पुनर्जन्म नहीं लेता। तुमको तो अभी ज्ञान है। जानते हो लक्ष्मी-नारायण सबसे ऊंच स्वर्ग के मालिक थे। सीता राम को स्वर्ग का मालिक नहीं कहेंगे। यह भी अभी रोशनी मिली है। तो बाप समझाते हैं जबकि अब सद्गति होती है तो दुर्गति का कोई भी कर्तव्य नहीं करना है। सबसे पहले तो देह-अभिमान छोड़ना है। सबसे अच्छा कर्म है एक बाप को याद करना, देही-अभिमानी हो रहना। अपनी जांच करते रहना है। कोई विकार तो नहीं आया। लोभ भी नहीं करना है। जबकि सब कुछ ईश्वर का है तो हम लोभ क्यों रखें। हमको जो बाप कहते हैं वह करते हैं। बाप तो हर एक बच्चे की रग अच्छी तरह देखते हैं ना। पोतामेल भी देखते हैं। कोई बहुत गरीब होते हैं तो कुछ न कुछ 15-20 रुपया बचाकर भी देते हैं। अपना भविष्य बनाते हैं। बाप राय भी देते हैं। थोड़ा बहुत फिर अपने बैंक में रखो 5 दो, 10 बैंक में रखो। तो श्रीमत मिली ना। पेट को पट्टी बांधकर भी शिवबाबा को देते हैं। शिवबाबा इन द्वारा ही तुम्हारे रहने करने के प्रबन्ध में लगाते हैं। यह ब्रह्मा बाबा भी शिवबाबा का अकेला बच्चा है। यह इकट्ठा क्यों करेगा। जबकि इसने ही अपना सब कुछ माताओं की सेवा में लगाया है। सब कुछ दे दिया। यह बच्चियां फिर 21 जन्मों के लिए वर्सा पाती हैं। तुम जानते हो हमारे देवी देवताओं का गृहस्थ धर्म पवित्र था। अभी तो पतित बन गये हो। तब बाबा समझाते हैं - यह भी ट्रस्टी हो गया ना। तुम माताओं को ट्रस्टी बना लिया। तुम यह सम्भालो, ममत्व टूट गया। बाप ने साक्षात्कार करा दिया कि तुम विश्व के मालिक बनते हो। विनाश की तैयारियां भी देख रहे हैं। परन्तु यह कोई नहीं समझते कि विनाश कराने वाला कौन है। कोई प्रेरक जरूर है। समझते भी हैं कि विनाश होने वाला है। जरूर भगवान भी होगा। परन्तु किस रूप में होगा? कृष्ण कैसे आये? भल कृष्ण का रूप बहुतों का बना देते हैं परन्तु वह तो आर्टीफीशियल हो जाता है। बहुत हैं जो कृष्ण का रूप बनाकर ठगते हैं। कोई का फिर जड़ मूर्ति में भाव बैठ जाता है। तो वैसे ही साक्षात्कार हो जाता है और फिर जाकर उनको चटकते हैं; क्योंकि कृष्ण है मोस्ट लवली बालक स्वर्ग का। उनमें कशिश बहुत है। बाबा से बहुत भारी वर्सा लेना होता है। बाप बैठ समझाते हैं कर्मों के ऊपर। बाबा से अगर कोई पूछते हैं तो बाबा झट बता सकते हैं - यह कुछ समझते ही नहीं। कर्म ऐसे करते हैं जो विकर्म ही होता है। देह-अभिमान बहुत रहता है। भल शिवबाबा कहते रहते हैं, ऐसे तो शिवबाबा के भगत बहुत हैं, काशी में भगत बैठे हैं। उन्हों का यह मंत्र है शिव काशी विश्वनाथ गंगा। अर्थ कुछ भी नहीं समझते हैं - समझते हैं गंगा इनसे निकली है इसलिए गंगा के कण्ठे पर जाकर बैठते हैं। समझते हैं हम वहाँ मुक्त हो जायेंगे। शिव काशी, शिव काशी उच्चारते हैं। फिर दिखाते हैं भागीरथ ने गंगा लाई। क्या गंगा द्वारा पतित से पावन हो जायेंगे। पतित-पावन को तो पुकारते हैं ना। वह कौन है - कैसे सहज राजयोग सिखाते हैं - यह कोई जानते नहीं। शिवबाबा को कैसे याद किया जाता है - यह भी तुम जानते हो। तुम्हारी है याद की यात्रा। तुम्हारी जिस्मानी यात्रा बन्द है। वह होती है जिस्मानी यात्रा, यह है रूहानी यात्रा। बाप कहते रहते हैं बच्चे घर को याद करो। यह छी-छी दुनिया, छी-छी पुराना शरीर है। मैं तुम्हारा बाप हूँ। तुमको वापिस ले जाऊंगा। इस महाभारत की लड़ाई में कितने खत्म होने वाले हैं। इतने करोड़ों मनुष्य हैं उनकी आत्मायें कहाँ जायेंगी। अपने-अपने धर्म के सेक्शन में स्टॉर मिसल जाकर रहेंगी। उसे कहा ही जाता है निराकारी दुनिया। वर्ल्ड उसको कहा जाता, जहाँ बहुत रहते हैं। अगर कहें ब्रह्म में लीन हो जाते हैं तो वर्ल्ड तो हुई नहीं। गाया जाता है निराकारी दुनिया, जिसमें आत्मायें रहती हैं, जिनको फिर पार्ट बजाने आना है। यह अविनाशी ड्रामा है। प्रलय तो कभी होती नहीं। सतयुग से कलियुग तक मनुष्यों की वृद्धि होती जाती है। वहाँ दूसरा कोई धर्म नहीं होगा। यहाँ तुमको नॉलेज का मालूम है। वहाँ सतयुग में नॉलेज नहीं रहती। इस समय तो बाप आप समान त्रिकालदर्शी बनाते हैं। अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जीते जी देह सहित सबसे ममत्व निकाल ट्रस्टी बनकर रहना है। श्रेष्ठ कर्म करने हैं। कभी भी किसी को दु:ख नहीं देना है।
2) किसी भी चीज़ में लोभ नहीं रखना है। रोज़ अपना पोतामेल देखना है कि मेरे में कोई विकार तो नहीं हैं। देह-अभिमान छोड़ एक बाप को याद करने का श्रेष्ठ कर्म करना है।
वरदान:-एक "पाइंट" शब्द की स्मृति से मन-बुद्धि को निगेटिव के प्रभाव से बचाने वाले नम्बरवन विजयी भव
वर्तमान समय विशेष माया का प्रभाव मन में निगेटिव भाव और भावना पैदा करने वा यथार्थ महसूसता को समाप्त करने का चल रहा है इसलिए पहले से ही सेफ्टी का साधन अपनाओ। इसका विशेष साधन है सिर्फ एक "पाइंट" शब्द। कोई भी संकल्प, बोल वा कर्म व्यर्थ है तो उसे पाइंट लगा दो तब नम्बरवन विजयी बन सकेंगे। माया के स्वरूपों को पहचानो, सीजन को पहचानो और स्वयं को सेफ कर लो।
स्लोगन:-संगम पर जिन्हें सेवा का श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त है वही पदमापदम भाग्यवान हैं।
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